परिचय (Introduction):
Kartik Purnima 15 नवंबर, को 2024 के दिन मनाई जाती है, यह हिंदू चंद्र कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण और पवित्र दिन माना गया है। यह दिन असम सहित भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए पूजनीय है। अक्सर “देवताओं के प्रकाश के त्योहार” के रूप में संदर्भित, कार्तिक पूर्णिमा हिंदुओं और जैनियों के लिए समान रूप से बहुत महत्व रखती है।
भक्तों का मानना है, कि इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों का आशीर्वाद होता है। जो इसे आध्यात्मिक शुद्धि और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए शुभ बनाता है। कई लोग नदियों और झीलों में पवित्र स्नान करते हैं, मिट्टी के दीये जलाते हैं, और प्रार्थना और धार्मिक उत्सवों में भाग लेते हैं। यह त्यौहार कार्तिक के पवित्र महीने के अंत के साथ भी जुड़ा हुआ है, जिसके दौरान कई भक्त भक्ति, दान और मांसाहारी भोजन से परहेज़ करते हैं। असम में कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव अक्सर नदी के किनारे दीप जलाकर, मंदिरों में अनुष्ठान करके और सामुदायिक समारोहों का आयोजन करके मनाया जाता है, जो आध्यात्मिकता और एकजुटता की भावना को बढ़ावा देते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा 2024 तिथि और समय (Kartik Purnima 2024 Date and Time):
2024 में, कार्तिक पूर्णिमा दिवाली के 15 दिन बाद और तुलसी विवाह के दो दिन बाद 15 नवंबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी।
कार्तिक पूर्णिमा शुरू: 15 नवंबर, 2024 को सुबह 06:19 बजे।
पूर्णिमा पर चंद्रोदय – 15 नवंबर, 2024 को शाम 04:51 बजे।
कार्तिक पूर्णिमा के अनुष्ठान और परंपराएँ
कार्तिक पूर्णिमा पर, भक्त कई अनुष्ठान करते हैं, जिनमें शामिल हैं:
कार्तिक स्नान: तीर्थ स्थलों पर सूर्योदय और चंद्रोदय के समय लिया जाने वाला पवित्र स्नान।
भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा: मंदिरों को फूलों, धूप और दीपों से सजाया जाता है। भक्त वैदिक मंत्रों का पाठ करते हैं, और आशीर्वाद पाने के लिए प्रार्थना करते हैं।
तुलसी विवाह: भगवान विष्णु और तुलसी के पौधे (देवी वृंदा) का प्रतीकात्मक विवाह किया जाता है।
सत्य नारायण पूजा: कई भक्त सत्य नारायण व्रत रखते हैं, और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कथा का पाठ करते हैं।
दीप दान: मिट्टी के दीपक जलाना और दान करना देवताओं का सम्मान करने की एक लोकप्रिय परंपरा है।
ओडिशा में उत्सव: कटक में, भगवान कार्तिक की बड़ी मूर्तियों की पूजा की जाती है, उसके बाद जुलूस निकाला जाता है, और महानदी में विसर्जन किया जाता है।
ज्योतिषीय महत्व (Astrological significance):
कार्तिक पूर्णिमा का विशेष ज्योतिषीय महत्व है। माना जाता है, कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति की जन्म कुंडली में बुध का प्रभाव होता है, जबकि देवी लक्ष्मी का सम्मान करने से शुक्र का प्रभाव बढ़ सकता है। इससे बुद्धि में वृद्धि, बेहतर निर्णय लेने की क्षमता और समृद्धि आती है।
कार्तिक पूर्णिमा पूजा के मुख्य लाभ (Main Benefits of Kartik Purnima Puja):
धन और समृद्धि लाता है।
बुद्धिमत्ता और तार्किक सोच को बढ़ाता है।
आपकी जन्म कुंडली में बुध और शुक्र ग्रह को मजबूत करता है।
कार्तिक पूर्णिमा: उत्सव और महत्व (Kartik Purnima: Celebration and Significance):
इस त्यौहार को ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ या ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है। जो राक्षस त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की जीत का जश्न मनाता है। इसके अतिरिक्त, कार्तिक पूर्णिमा देव दीपावली के साथ मेल खाती है, जो देवी-देवताओं के पृथ्वी पर अवतरण का त्योहार है। इस दिन, भक्त पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, मिट्टी के दीपक जलाते हैं, और दिव्य आशीर्वाद पाने के लिए प्रार्थना करते हैं।
मुख्य महत्व (Main importance):
भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा: एकमात्र दिन जब दोनों देवताओं को एक साथ मनाया जाता है।
पवित्र स्नान अनुष्ठान: पवित्र नदियों में पवित्र डुबकी लगाने से आत्मा को शुद्ध मिलता है।
आध्यात्मिक महत्व: कार्तिक पूर्णिमा को 100 अश्वमेध यज्ञ करने के बराबर माना जाता है, जो भक्तों को जीवन के चार लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है: अर्थ, धर्म, कर्म और मोक्ष।
ज्योतिषीय प्रभाव: माना जाता है, कि इस दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से आपकी जन्म कुंडली में बुध और शुक्र ग्रह सशक्त होते हैं, बुद्धि में वृद्धि होती है और समृद्धि आती है।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व (Importance of Kartik Purnima):
कार्तिक मास की पूर्णिमा को वर्ष की सबसे पवित्र पूर्णिमाओं में से एक माना जाता है। इस दिन किए गए दान-पुण्य से फल की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यदि चंद्रमा कृत्तिका नक्षत्र में और सूर्य विशाखा नक्षत्र में हो तो, पद्मक योग बनता है, जो बहुत दुर्लभ है। और यदि इस दिन चंद्रमा और बृहस्पति कृत्तिका नक्षत्र में हो तो पूर्णिमा को महापूर्णिमा कहते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन शाम को त्रिपुर उत्सव मनाने और दीपदान करने से पिछले जन्म के कष्ट दूर होते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा की कथा (Story of Kartik Purnima):
प्राचीन काल में त्रिपुर नाम का एक राक्षस था। उसने प्रयागराज में एक लाख वर्ष तक घोर तपस्या की। उसकी तपस्या देखकर सभी जीव-जंतु और देवता भयभीत हो गए। इसलिए देवताओं ने उसकी तपस्या भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं, लेकिन यह व्यर्थ रहा। त्रिपुरासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा उसके सामने प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा। त्रिपुरासुर ने इच्छा जताई कि, मुझे न तो कोई देवता मारे और न ही कोई मनुष्य। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दे दिया, जिसके बाद राक्षस निडर हो गया और सभी को प्रताड़ित करने लगा। इतना ही नहीं, वह कैलाश पर विजय पाने के लिए भी गया, वहां उसका भगवान शिव से युद्ध हुआ और अंत में भगवान शिव ने ब्रह्मा और भगवान विष्णु की मदद से उसका वध कर दिया।
निष्कर्ष (Conclusion):
कार्तिक पूर्णिमा आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व का दिन है। अनुष्ठानों और परंपराओं का पालन करके, भक्तों का मानना है, कि वे सौभाग्य, आध्यात्मिक विकास और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। चाहे आप पवित्र स्नान परंपरा का पालन करें, भगवान विष्णु की पूजा करें, या उत्सव में भाग लें, कार्तिक पूर्णिमा आध्यात्मिक लक्ष्यों पर चिंतन करने और पूर्णता की तलाश करने का समय है।