प्रस्तावना (Introduction):
दीवाली भारत एक विविधताओं से भरा देश है जहाँ अनेकों त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक प्रमुख त्यौहार है ‘दीवाली’। इसे ‘प्रकाश का पर्व’ भी कहा जाता है। यह त्यौहार हर साल हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है, जो कि अक्टूबर या नवंबर के महीने में पड़ता है। दीवाली के साथ कई धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक भावनाएँ जुड़ी होती है। यह न केवल हिंदुओं का बल्कि जैन, सिख और बौद्ध धर्मों का भी प्रमुख पर्व है।
दीवाली का महत्व (Important Of Diwali):
दीवाली को हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व दिया जाता है, यह त्यौहार अंधकार से प्रकाश की और आज्ञा से ज्ञान की और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। दीवाली का त्यौहार जीवन में समृद्धि शांति और खुशियों के आगमन का प्रतीक होता है।
इस पर्व का धार्मिक महत्व भगवान राम से जुड़ा है मानता है कि इसी दिन भगवान राम 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। और उनके स्वागत के लिए अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर पूरे नगर को रोशन किया था इसीलिए इसे ‘दीपों का पर्व’ कहा जाता है।
दीवाली का इतिहास (History Of Diwali):
दीवाली का इतिहास और इसके मनाए जाने की पथाएँ हजारों वर्षों पुरानी है। कई पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथो में इसका उल्लेख मिलता है विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में इसे अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।
आईए जानते हैं की दिवाली के इतिहास से जुड़े प्रमुख धार्मिक दृष्टांत क्या है:
1. रामायण के अनुसार (According to Ramayana):
रामायण के अनुसार, जब भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 साल का वनवास समाप्त किया और राक्षस रावण का वध करके अयोध्या लौटे, तब अयोध्या के लोगों ने ‘दीप’ जलाकर उनका स्वागत किया। इस प्रकार दीवाली अच्छाई की बुराई पर विजय और राम के राज्यभिषेक की खुशी के रूप में मनाई जाती है।
2. महाभारत के अनुसार (According to the Mahabharata):
महाभारत के अनुसार, दीवाली का एक संबंध पांडवों की वापसी से भी है। जब पांडव 12 साल का वनवास और 1 साल का अज्ञातवास पूरा कर अपने राज्य हस्तिनापुर लौटे तब उनकी वापसी की खुशी में नगरवासियों ने दीप जलाए और उत्सव मनाया।
3. वामन अवतार और राजा वालीबाली (Vamana Avatar and King Vali Bali):
हिंदू धर्म में एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दानव राजा बलि को पाताल लोक में भेज दिया था। इस दिन को असुरों पर देवताओं की विजय के रूप में मनाया जाता है।
लक्ष्मी पूजन और समुद्र मंथन (Laxmi Puja and Samudra Manthan):
धार्मिक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के समय इसी दिन देवी लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। इसीलिए दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व होता है। इस दिन घरों और दुकानों की साफ-सफाई करके दीप जलाए जाते हैं और लक्ष्मी पूजन करके धन-धान्य की कामना की जाती है।
समुद्र मंथन (Samudra Manthan):
एक समय देवताओं की शक्ति कम हो गई थी, और असुरों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। इस स्थिति में सभी देवता भगवान विष्णु के पास सहायता के लिए गए। विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया, जिसमें देवताओं और असुरों को मिलकर मंथन करना था। इसके लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया। समुद्र मंथन से अमृत प्राप्ति के साथ कई महत्वपूर्ण वस्तुएँ और शक्तियाँ भी प्राप्त हुई।
दीवाली की 5 दिन की परंपरा (5 Days Of Diwali):
दीवाली का पर्व मुख्य रूप से 5 दिनों तक मनाया जाता है। प्रत्येक दिन का अपना अलग महत्व और परंपराएं होती है।
आईए जानते हैं इन पांच दिनों के बारे में:
पहला दिन: “धनतेरस” दीवाली का शुभारंभ धनतेरस से होता है। इसे ‘धन त्रयोदशी’ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान देवी और लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि धनतेरस के दिन सोना, चांदी या नए बर्तन खरीदने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
दूसरा दिन: “नरक चतुर्दशी” इसे ‘चोटी दीवाली’ या ‘नरक चौदस’ भी कहते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था और 16,000 कन्याओं को उसके चंगुल से मुक्त कराया था। इस दिन उबटन और स्नान करने की परंपरा है, जिससे शरीर और मन को शुद्ध किया जा सकता है।
तीसरा दिन: ‘मुख्य दीवाली’ दीवाली का मुख्य दिन अमावस्या को माना जाता है। इस दिन घरों में लक्ष्मी- गणेश पूजन किया जाता है। इसे दीपावली का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। घरों को साफ करके दीपों से सजाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी घरों में आती है और आशीर्वाद देती है। रात में आतिशबाजी भी की जाती है।
चौथा दिन: ‘गोवर्धन पूजा या अन्नकूट’ इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने इस दिन गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर वृंदावन के निवासियों को इंद्र देव के प्रकोप से बचाया था। इस दिन अन्नकूट का आयोजन होता है, जिसमें भगवान को विभिन्न प्रकार के पकवान चढ़ाए जाते हैं।
पांचवा दिन: ‘भाई दूज’ दीवाली के पर्व का समापन भाई दूज के साथ होता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती है। भाई दूज का महत्व भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और मजबूत करने के रूप में देखा जाता है।
यह त्यौहार भाई-बहन के प्रेम, स्नेह और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह दिवाली के दो दिन बाद आता है, और कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है, इसलिए इस ‘द्वितीया’ या “दूज” कहा जाता है।
भाई दूज की परंपराएँ (Traditions of Bhai Dooj):
- बहन भाई को तिलक करती है और उसकी आरती उतारती है।
- भाई अपनी बहन को उपहार देता है।
- बहन भाई की लंबी उम्र और उसकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती है।
- इस दिन भाई बहन एक-दूसरे के साथ मिलकर समय बिताते हैं, और स्वादिष्ट भोजन करते हैं।
भाई दूज की कथा (Story of Bhai Dooj):
इस पर्व से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, यमराज अपनी बहन यमुनाजी के घर गए थे। यमुनाजी ने अपने भाई का स्वागत किया और उसे तिलक करके भोजन कराया। यमराज ने इस दिन को इतना शुभ माना कि उन्होंने कहा, जो भी भाई इस दिन अपनी बहन के घर जाकर भोजन करेगा और तिलक कराएगा, उसे मृत्यु का भय नहीं रहेगा। तब से इस पर्व को भाई दूज के रूप में मनाया जाने लगा।
दिवाली से जुड़े रीति-रिवाज और परंपराएँ (Customs and Traditions Associated with Diwali):
सफाई और सजावट: दिवाली से पहले घरों की सफाई और पुताई करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि साफ-सुधार घरों में देवी लक्ष्मी का वास होता है। लोग अपने घरों को रंग-बिरंगी लाइट, फूलों की माला, और रंगोली से सजाते हैं।
दीप जलाना: दीपावली के दिन दीप जलाने के परंपरा हजारों साल पुरानी है। दीप जलाने का उद्देश्य अंधकार को दूर करके चारों ओर प्रकाश फैलाना होता है। दीयों का प्रकाश जीवन में आने वाले अंधकार को मिटा कर बुरी शक्तियों को समाप्त करने का प्रतीक होता है।
लक्ष्मी-गणेश पूजा: दिवाली की रात लक्ष्मी और गणेश की पूजा का विशेष महत्व है। लोग शाम को अपने घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों को सजाकर पूजा करते हैं। इस पूजा में लक्ष्मीजी को धन की देवी और गणेशजी को बुद्धि और विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है।
आतिशबाजी (Fireworks):
दिवाली की रात को आतिशबाजी करना एक आम प्रथा है। माना जाता है कि यह राक्षसी से शक्तियों को भगाने का प्रतीक है। हालांकि, बढ़ते प्रदूषण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के कारण अब पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए कम आतिशबाजी करने की सलाह दी जाती है।
मिठाइयाँ और पकवान: दिवाली पर लोग अपने घरों में तरह-तरह की मिठाइयाँ और पकवान बनाते हैं। इनका आदान-प्रदान एक दूसरे के साथ खुशी साझा करने का तरीका है। दिवाली के दिन विशेष रूप से लड्डू, बर्फी, गुलाब जामुन, गुझिया, और नमकीन पकवान बनाए जाते हैं।
दीवाली के दौरान सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू (Social and Cultural Aspects during Diwali):
सामाजिक संबंधों को मजबूत करना (Strengthening social ties):
दिवाली का पर्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी लोगों को जोड़ने का काम करता है। इस दिन लोग अपने दोस्तों, परिवारजनों और पड़ोसियों के साथ खुशियाँ मनाते हैं। उपहारों और मिठाइयों का आदान-प्रदान भी एक परंपरा है, जो सामाजिक बंधनों को और मजबूत करता है।
बाजारों में रौनक (Liveliness in the markets):
दिवाली से पहले बाजारों में खूब रौनक होती है। लोग नए कपड़े, सजावट का सामान, मिठाइयाँ, और दिवाली की पूजा सामग्री खरीदते हैं। दीपावली के समय व्यापारिक गतिविधियाँ भी काफी तेज हो जाती है, और बाजार में काफी भीड़ भी लग जाती है।
समाज सेवा और दान-पुण्य (Social service and charity):
दिवाली के समय कई लोग समाज सेवा और दान-पुण्य भी करते हैं। दो ऐसे कार्य है जो न केवल समाज की भलाई के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि व्यक्ति के नैतिक और आत्मिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आइए, इन दोनों को अलग-अलग समझते हैं:
समाज सेवा (Social Service):
समाज सेवा का अर्थ होता है समाज के हित में निस्वार्थ रूप से कार्य करना। इसका उद्देश्य होता है समाज में गरीब वंचित, और जरूरतमंद लोगों की मदद करना और उनके जीवन को बेहतर बनाना। समाज सेवा के उदाहरण में शिक्षा देना, स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करना, पर्यावरण संरक्षण, और जनकल्याण से जुड़े कार्य करना शामिल है।
समाज सेवा के लाभ (Benefits of social service):
- समाज में सकारात्मक बदलाव: यह समाज में एकता और समानता को बढ़ावा देता है।
- आत्मिक संतुष्टि: समाज सेवा करने से व्यक्ति को मन की शांति और आत्मिक संतोष मिलता है।
3. मानवता की सेवा: यह इंसानियत और करुणा का प्रतीक है, जो हमें दूसरों की मदद करने के लिए प्रेरित करता है।
दान और पुण्य (charity and virtue):
दान का मतलब होता है किसी जरूरतमंद व्यक्ति को बिना किसी अपेक्षा के मदद देना। यह धन, वस्त्र, भोजन, या अन्य संसाधनों के रूप में हो सकता है। भारतीय संस्कृति में दान को पुण्य का कार्य माना गया है, जिसे व्यक्ति की आत्मा की उन्नति और भविष्य के लिए शुभ फल प्राप्त करने का साधन माना जाता है।
दान के प्रकार (Types of donations):
अन्नदान: भूखे को भोजन देना।
वस्त्रदान: गरीबों को कपड़े देना।
धनदान: आर्थिक रूप से मदद करना।
विद्यादान: शिक्षा प्रदान करना।
दान के लाभ (Benefits of donation):
आध्यात्मिक उन्नति: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
समाज में समानता: यह गरीब और अमीर के बीच की खाई को काम करता है।
सकारात्मक ऊर्जा: यह सकारात्मक ऊर्जा और भावनाओं को बढ़ाता है और जीवन में खुशहाली लाता है।
दिवाली का निष्कर्ष (Diwali Conclusion):
दिवाली का एक ऐसा त्यौहार है जो अंधकार पर प्रकाश की विजय, बुराई पर अच्छाई की जीत, और अज्ञान पर ज्ञान के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। दिवाली के माध्यम से हम जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की कामना करते हैं। इस पर्व पर लक्ष्मी पूजा के जरिए हम धन और वैभव की देवी से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जबकि दीप जलाकर हम अपने जीवन से अंधकार और नकारात्मक को दूर करने का संकल्प लेते हैं।
दिवाली का त्यौहार हमें यह सीखता है कि चाहे जीवन में कितने भी कठिनाई भरे पल आए, अच्छाई और सत्य की जीत हमेशा सुनिश्चित होती है। यह पर्व आपसी प्रेम, भाईचारे और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने का अवसर भी है। दिवाली के दौरान दीये जलाना, मिठाइयों का आदान-प्रदान, और खुशियों को साझा करना हमें जीवन में सकारात्मकता और आशा के साथ आगे बढ़ने का संदेश देता है।