Cheti Chand: सिंधी समाज का प्रमुख त्यौहार

परिचय (Introduction):

“Cheti Chand”, सिंधी समुदाय का एक प्रमुख और पवित्र त्यौहार है, जिसे झूलेलाल जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। यह पर्व नए साल के आगमन का प्रतीक है और सिंधी समाज के आराध्य देवता भगवान झूलेलाल की पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाता है। यह दिन चंद्र माह के चैत्र मास की चंद्र दर्शन तिथि को आता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार अत्यधिक शुभ मानी जाती है।

Cheti Chand का ऐतिहासिक महत्व (Historical importance of Cheti Chand):

चेटी चंद का इतिहास सिंध प्रांत से जुड़ा हुआ है, जो वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा है। भगवान झूलेलाल को सिंधी समाज के रक्षक देवता माना जाता है, जिन्होंने सिंधु नदी के जल को सुरक्षित रखने और समाज को एकजुट करने का कार्य किया। उनके प्रति आस्था और श्रद्धा के कारण चेटी चंद का पर्व मनाया जाता है।

सिंधु नदी का महत्व: सिंधु नदी सिंधी समाज के लिए जीवनदायिनी है, और भगवान झूलेलाल को इस नदी के संरक्षक के रूप में पूजा जाता है।

धार्मिक एकता का संदेश: यह पर्व धार्मिक सहिष्णुता और एकता का प्रतीक है, जो समाज में सामंजस्य स्थापित करने का संदेश देता है।

चेटी चंद के उत्सव की परंपराएं (Traditions of the celebration of Cheti Chand):

भगवान झूलेलाल की पूजा (Worship of Lord Jhulelal):

Cheti Chand

Chetty Chand के दिन भगवान झूलेलाल की पूजा-अर्चना की जाती है। उनके सामने दीप जलाकर, प्रसाद अर्पित करके और भजन-कीर्तन गाकर उनकी आराधना की जाती है।

“Baharana Sahib”: यह पूजा का मुख्य हिस्सा है, जिसमें सिंधी समाज के लोग भगवान झूलेलाल के प्रतीक स्वरूप जल से भरा कलश सजाते हैं।

आरती और भजन: पूजा के दौरान “झूलेलाल चालीसा” और भजन गाए जाते हैं।

सांस्कृतिक कार्यक्रम (Cultural programme):

Cheti Chand

इस दिन सिंधी समाज सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करता है।

लोक नृत्य: सिंधी लोक नृत्य जैसे डांडिया और फोक डांस का प्रदर्शन किया जाता है।

संगीत कार्यक्रम: सिंधी भजनों और गीतों का आयोजन होता है, जो भगवान झूलेलाल की महिमा का गुणगान करते हैं।

प्रसाद और भोजन (Prasad and food):

Cheti Chand

चेटी चंद के दिन विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है।

“Tahiri”: मीठे चावल जो भगवान को अर्पित किए जाते हैं।

विशेष भोजन: सिंधी कढ़ी, कोकी, और अन्य पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।

चेटी चंद और झूलेलाल (Cheti Chand and Jhulelal):

Cheti Chand

भगवान झूलेलाल को “उदेरो लाल” और “सिंधु का रक्षक” भी कहा जाता है। चेटी चंद का पर्व भगवान झूलेलाल के अवतरण का स्मरण करता है।

जल का महत्व: झूलेलाल की पूजा में जल का विशेष महत्व है, क्योंकि यह प्रकृति और जीवन का प्रतीक है।

सिंधु नदी की आरती: नदी की पूजा करते समय भगवान झूलेलाल से समाज की खुशहाली और समृद्धि की कामना की जाती है।

चेटी चंद का धार्मिक और सामाजिक संदेश (Religious and social message of Cheti Chand):

चेटी चंद केवल एक धार्मिक त्यौहार नहीं है, बल्कि यह समाज में प्रेम, एकता और भाईचारे का संदेश देता है।

1. धार्मिक सहिष्णुता: यह पर्व सभी धर्मों को समान मानने और उन्हें अपनाने का संदेश देता है।

2. सामाजिक सेवा: इस दिन सिंधी समाज द्वारा गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा की जाती है।

3. पर्यावरण संरक्षण: जल संरक्षण और पर्यावरण के महत्व को समझने का अवसर है।

चेटी चंद के प्रमुख आयोजन (Major events of Cheti Chand):

जुलूस और शोभायात्रा (Processions and processions):

Cheti Chand

चेटी चंद के दिन सिंधी समाज भव्य जुलूस निकालता है। इसमें भगवान झूलेलाल की प्रतिमा को रथ में सजाया जाता है।

पवित्र नदियों और तालाबों में पूजा: झूलेलाल की प्रतिमा के साथ जलाशयों में पूजा की जाती है।

सामूहिक भजन: शोभायात्रा के दौरान भजनों का आयोजन होता है।

सामुदायिक भोज (community dinner):

Cheti Chand

सिंधी समाज इस दिन सामूहिक भोज का आयोजन करता है। इसमें सभी लोग एक साथ भोजन करते हैं और भाईचारे का प्रतीक प्रस्तुत करते हैं।

चेटी चंद की आधुनिक प्रासंगिकता (Modern relevance of Cheti Chand):

Cheti Chand

आज के समय में चेटी चंद केवल सिंधी समाज तक सीमित नहीं है। यह पर्व एक वैश्विक आयोजन बन चुका है। विदेशों में बसे सिंधी समुदाय भी इसे पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

सामाजिक मीडिया पर प्रचार: आधुनिक समय में सोशल मीडिया के माध्यम से इस पर्व को बढ़ावा दिया जा रहा है।

धार्मिक पर्यटन: चेटी चंद के अवसर पर लोग सिंधु नदी और अन्य पवित्र स्थलों की यात्रा करते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):

चेटी चंद एक ऐसा पर्व है जो हमें धार्मिक सहिष्णुता, जल संरक्षण, और सामाजिक एकता का संदेश देता है। भगवान झूलेलाल की शिक्षाएं आज भी हमें जीवन में सत्य, धर्म, और करुणा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। इस पर्व को मनाकर सिंधी समाज न केवल अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखता है, बल्कि इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का भी कार्य करता है।







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