गणेश चतुर्थी: आस्था, उल्लास और सामुदायिक एकता का पर्व

परिचय (Introduction):

गणेश चतुर्थी भारत में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय हिंदू त्यौहार है, जो भगवान गणेश के जन्मदिवस के उपलक्ष में मनाया जाता है। इस मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात सहित कई अन्य राज्य में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व का विशेष महत्व यह है कि भगवान गणेश को “विघ्नहर्ता” यानी सभी विघ्नों को हरने  वाला और “सिद्धिदाता” यानी सफलता और समृद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है। गणेश चतुर्थी का पर्व 10 दिनों तक चलता है, जो भाद्रपद मास के शुक्ला पक्ष की चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक चलता है।

गणेश चतुर्थी की तैयारी (Preparations for Ganesh Chaturthi):

गणेश चतुर्थी की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है।  इस उत्सव में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना की जाती है। मूर्ति को घरों में, मंदिरों में और सार्वजनिक स्थानों पर पंडालों में स्थापित किया जाता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत मूर्तिकारों द्वारा गणेश की सुंदर और भव्य मूर्तियां के निर्माण से होती है। मूर्ति को शिल्पकार विभिन्न सामग्रियों से बनाते हैं, जिनमें मिट्टी, प्लास्टर ऑफ पेरिस, लकड़ी, धातु आदि प्रमुख होते हैं। हालांकि पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए, आजकल मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण और उपयोग ज्यादा हो रहा है, ताकि विसर्जन के दौरान प्रदूषण कम हो सके।

पंडालों को सजाने का कार्य भी उत्सव से पहले शुरू हो जाता है। पंडालों की सजावट में रंग-बिरंगी रोशनी, फूलों की मालाएं, और भव्य झांकियां बनाई जाती है। विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, नित्य और संगीत का आयोजन भी गणेश चतुर्थी के दौरान होता है।

गणेश चतुर्थी का आरंभिक दिन (The Beginning of Ganesh Chaturthi):

1. कलश स्थापना और मूर्ति स्थापना (Kalash installation and idol installation):

गणेश चतुर्थी के दिन सबसे पहले शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना की जाती है। इसके साथ ही “कलश स्थापना” भी की जाती है, जो शुद्धता और शुभता का प्रतीक है। कलश को साफ पानी से भरकर उस पर नारियल और आम के पत्तों को रखा जाता है। इसे भगवान गणेश के प्रतीक रूप में पूजा स्थल पर रखा जाता है।

2. प्राणप्रतिष्ठा (Dignity of life):

मूर्ति स्थापना के बाद “प्राणप्रतिष्ठा” की जाती है, जिसमें भगवान गणेश को मंत्रों के माध्यम से आमंत्रित किया जाता है कि वे मूर्ति में विराजमान हो। इस प्रक्रिया को विधिपूर्वक करने के लिए पंडित जी विशेष मंत्रों का उच्चारण करते हैं। यह प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि इसके माध्यम से मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठित होते हैं।

3. पूजन सामग्री और पूजा विधि (Puja material and puja method):

पूजा के दौरान फुल, दूर्वा (घास), लाल कपड़े, सिंदूर, चंदन, मोदक (गणेशजी का प्रिय प्रसाद), लड्डू, धूप, दीप, नैवेद्य आदि का उपयोग होता है। भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है, इसलिए हर शुभ कार्य में उनकी पूजा पहले की जाती है। पूजा के दौरान भक्त गणेश मंत्रों का जाप करते हैं, जैसे:

— “ॐ गण गणपतये नमः” 

– “वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ: 

  निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥”

4. नैवेद्य अर्पण और आरती (Offering of offerings and Aarti):

पूजा के बाद भगवान गणेश को नैवेद्य (भोग) अर्पित किया जाता है, जिसमें मोदक, लड्डू और अन्य मिठाइयां प्रमुख होती है इसके बाद गणेश जी की आरती की जाती है, जिसमें परिवार और भक्त मिलकर आरती गाते हैं और घंटियां बजाते हैं। आरती के बाद भगवान गणेश के सामने श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं रखते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

उत्सव के दौरान (During the celebration):

1. दैनिक पूज (Daily Puja):

गणेश चतुर्थी का पर्व दस दिनों तक मनाया जाता है। इस दौरान भगवान गणेश की पूजा प्रतिदिन की जाती है। हर दिन भक्त भगवान गणेश को नए वस्त्र पहनाते हैं और विशेष भोग अर्पित करते हैं। पूजा में विशेष रूप से दूर्वा, फुल, मोदक और लड्डू का अर्पण होता है। गणेश जी को दुर्गा बहुत प्रिय मानी जाती है, इसलिए हर दिन दूर्वा अर्पित करना अनिवार्य होता है।

2. सांस्कृतिक कार्यक्रम (Cultural programme):

गणेश चतुर्थी के दौरान कई स्थान पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों  का आयोजन होता है। इसमें भजन, कीर्तन, नित्य, नाटक और अन्य कार्यक्रम शामिल होते हैं। विशेष रूप से महाराष्ट्र में पंडालों में विभिन्न प्रकार की झांकियां लगाई जाती है, जो किसी ऐतिहासिक या पौराणिक कथा पर आधारित होती है।  इसके अलावा, शास्त्रीय संगीत और नृत्य के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

3. लड्डू और मोदक का महत्व (Importance of Laddu and Modak):

गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश को लड्डू और मोदक अर्पित किए जाते हैं, जो उनके प्रिय माने जाते हैं। मोदक एक विशेष प्रकार की मिठाई है जो चावल के आटे या गेहूं के आटे से बनाई जाती है और इसमें नारियल और गुड़ का मिश्रण भरकर उसे भाप में पकाया जाता है।  इस “सत्य” और “ज्ञान” का प्रतीक माना जाता है। 

4. सामाजिक समरसता (Social harmony):

गणेश चतुर्थी का त्योहार सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है। यह पर्व विभिन्न समाजों और धर्मों के लोगों को एक साथ लाता है। सार्वजनिक पंडालों में लोग मिलजुलकर भगवान गणेश की पूजा करते हैं, जिससे समाज में एकता और भाईचारा बढ़ता है। यह पर्व किसी विशेष जाती या धर्म का नहीं  होता, बल्कि सभी के लिए होता है।

विसर्जन की प्रक्रिया (The Process of Immersion):

1. विसर्जन की तैयारी (Preparing for immersion):

गणेश चतुर्थी का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन होता है, जब भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।  विसर्जन का अर्थ है भगवान गणेश की मूर्ति को किसी नदी, तालाब, झील या समुद्र में विसर्जित करना।  विसर्जन से पहले परिवार और पंडाल में अंतिम पूजा की जाती है, जिसे “गणपति बप्पा की विदाई पूजा” कहा जाता है। इस पूजा में श्रद्धालु गणेश जी से प्रार्थना करते हैं कि वे अगले साल फिर से आए और अपना आशीर्वाद दे। इस प्रार्थना के साथ लोग “गणपति बप्पा मोरया”, अगले बरस तू जल्दी आ” के जयकारे लगाते हैं।

2. शोभायात्रा और विसर्जन (Procession and Immersion):

मूर्ति विसर्जन के समय गणेश जी की शोभायात्रा निकाली जाती है। यह यात्रा धूमधाम से होती है, जिसमें ढोल-ताशे नाच-गाना और जयकारों के साथ भगवान गणेश को विदाई की जाती है। लोग रंग-गुलाल उड़ते हुए और “गणपति बप्पा मोरया मंगल मूर्ति मोरया” के नारों के साथ गणेश जी को विसर्जन स्थल तक लेकर जाते हैं। यह यात्रा बहुत ही आनंदमय होता है और भक्त भगवान गणेश के साथ अपने गहरे प्रेम और भक्ति का प्रदर्शन करते हैं।

3. विसर्जन और विदाई (Immersion and farewell):

विसर्जन स्थल पर पहुंचकर अंतिम पूजा की जाती है और फिर भगवान गणेश की मूर्ति को पानी में प्रवाहित किया जाता है। यह प्रक्रिया इस विश्वास के साथ की जाती है कि भगवान गणेश जल में लीन होकर अपने धाम लौट जाते हैं और अगले वर्ष फिर से पृथ्वी पर आते हैं। विसर्जन का यह प्रतीकात्मक करता है कि सब कुछ अस्थाई है और हमें हर चीज को सम्मान के साथ विदा करना चाहिए।

पर्यावरणीय जागरूकता (Environmental Awareness):

गणेश चतुर्थी के दौरान मूर्ति विसर्जन के समय कई पर्यावरण समस्याएं उत्पन्न होती है, जैसे जल प्रदूषण और मूर्तियों के निर्माण में हानिकारक रसायनों का उपयोग।  इसलिए अब कई लोग और संगठन पर्यावरण के प्रति जागरूक हो रहे हैं और मिट्टी की मूर्तियों का उपयोग कर रहे हैं, जो जल में आसानी से घुल जाती है और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचातीं। इसके अलावा, लोग घर पर छोटे तालाब या टब में भी मूर्ति विसर्जित करने लगे हैं, ताकि सार्वजनिक जल स्रोतों को प्रदूषण न किया जाए।

निष्कर्ष (Conclusion):

गणेश चतुर्थी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज में समुदायिकता, भक्ति, उत्सव और सामाजिक चेतना का प्रतीक है। यह पर्व भक्तों को भगवान गणेश के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति पद र्शित  करने का अवसर प्रदान करता है और समाज में एकता और भाईचारे का संदेश देता है। 

 

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