दशैं (दशहरा) – नेपाल का प्रमुख त्योहार

परिचय (Introduction):

दशैं, जिसे भारत में “दशहरा” के नाम से जाना जाता है, नेपाल का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह त्यौहार 15 दिनों तक चलता है और नेपाल में इसे बहुत ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है।  दशैं का महत्व बुराई पर अच्छाई की जीत से जुड़ा है, और यह देवी दुर्गा की पूजा का समय होता है। इस त्यौहार को विजयादशमी भी कहा जाता है, और इसे विशेष रूप से देवी दुर्गा दुर्गा द्वारा महिषासुर राक्षस के वध और भगवान राम द्वारा रावण पर विजय प्राप्त करने के रूप में मनाया जाता है।

नेपाल में दशैं न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने का भी एक महत्वपूर्ण समय होता है।  इस दौरान लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने जाते हैं और परिवार के बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। 

नीचे दशैं के 15 दोनों का चरणबद्ध वर्णन किया गया है:

पहला दिन: घटनास्थापना की शुरुआत (Day 1: Start of the event):

घटनास्थापना दशैं का पहला दिन है और इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस दिन से नवरात्रि की शुरुआत होती है। परिवारों में एक विशेष पूजा स्थल बनाया जाता है, जिसे पूजा घर या पूजास्थल कहा जाता है। इस पूजा स्थल पर मिट्टी के बर्तन में जौ या धान के बीज बोए जाते हैं, जिन्हें “जमरा” कहा जाता है। यह जमरा दशैं के अंत तक धीरे-धीरे उगता है और इसे  शुभ माना जाता है। लोग देवी दुर्गा का आह्वान करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए घट (कलश) की स्थापना करते हैं। इस कलश को पवित्र जल से भरा जाता है और इसमें आम या बेलपत्र के पत्तों को सजाया जाता है। 

घटनास्थापना का मुख्य उद्देश्य देवी दुर्गा को बुलाना होता है, ताकि वह अपने भक्तों के घरों में विराजमान हो और उन्हें आशीर्वाद प्रदान करें। इस दिन लोग अपने पूजा घरों को साफ और पवित्र रखते हैं, क्योंकि माना जाता है कि देवी केवल साफ और शांतिपूर्ण वातावरण में ही आती है।

दूसरा दिन: द्वितीया (Second Day: Dwitiya):

दूसरे दिन को द्वितीया कहते हैं, और यह अपेक्षाकृत एक साधारण दिन होता है। लोग इस दिन अपने पूजा स्थल में देवी दुर्गा की उपासना जारी रखते हैं। इस दिन देवी के प्रति श्रद्धा और भक्ति को बनाए रखने के लिए विशेष अनुष्ठान नहीं होते, लेकिन परिवार के सदस्य अपने घरों में देवी की स्तुति करते हैं। जमरा को हर दिन पानी दिया जाता है और उसकी देखभाल की जाती है ताकि वह सही ढंग से बढ़े।

तीसरा दिन: तृतीया (Third Day: Tritiya):

तीसरे दिन को तृतीया कहा जाता है। इस दिन भी पूजा-पाठ और देवी की आराधना का सिलसिला जारी रहता है। तृतीया के दिन लोग अपने घरों में देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए ध्यान और प्रार्थना करते हैं। इस दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है, जो शक्ति और साहस की प्रतीक मानी जाती है।

चौथा दिन: चतुर्थी (Day Four: Chaturthi):

चतुर्थी के दिन को पूजा में और भी विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने आस-पास के मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और देवी दुर्गा की स्तुति करते हैं। देवी दुर्गा के चौथे रूप, देवी कूष्मांडा, की पूजा की जाती है। यह दिन भक्तों के लिए अपने जीवन में शांति और समृद्धि की कामना करने का एक अवसर होता है। 

पांचवा दिन: पंचमी (Fifth Day: Panchami):

पंचमी के दिन देवी स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इस दिन का महत्व देवी के पांचवें रूपों की पूजा करने से है, जिसे माता के रूप में देखा जाता है। इस दिन भक्त अपने घरों में देवी की पूजा करते हैं और उन्हें फूल और फल अर्पित करते हैं। स्कंदमाता की पूजा करने से भक्तों को परिवार में सुख और समिति समृद्धि प्राप्त होती है।

छठा दिन: षष्ठी (Sixth day: Shashthi):

छठे दिन को षष्ठी कहा जाता है, और इस दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। यह दिन विशेष रूप से शक्ति और साहस का प्रतीक होता है। षष्ठी के दिन लोग अपने पूजा स्थल पर विशेष अनुष्ठान करते हैं और देवी दुर्गा से अपनी रक्षा की कामना करते हैं। इस दिन लोग अपने परिवार के साथ मिलकर पूजा करते हैं और देवी से अपने जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करते हैं। 

सातवां दिन: फुलपाती (Day Seven: Phulpati):

फुलपाती दशैं  का सातवां दिन होता है और इस दिन से दशैं  के बड़े उत्सव की शुरुआत होती है। फुलपाती शब्द का अर्थ है “फूल और पत्तियां,”  और यह एक विशेष अनुष्ठान होता है, जिसमें देवी दुर्गा को फूल, पत्तियां, फल और अन्य पवित्र सामग्री अर्पित की जाती है। काठमांडू में, फुलपाती की एक विशेष परंपरा होती है जिसमें राजमहल में फूलों और पत्तियों को विशेष समारोह के साथ लाया जाता है।  यह दिन राष्ट्रीय  स्तर पर बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, और पूरे नेपाल में इस उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।

आठवां दिन: महाअष्टमी (Eighth Day: Maha Ashtami):

महाअष्टमी दशैं का आठवां दिन होता है और यह सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक होता है। इस दिन देवी दुर्गा के महिषासुर  मर्दिनी रूप की पूजा की जाती है, जिसने राक्षस महिषासुर का वध करके बुराई का अंत किया था।  महाअष्टमी के दिन बलि देने की परंपरा भी होती है, जिसमें बकरे, भैंसे से और अन्य पशुओं की बलि दी जाती है। यह बलि देवी दुर्गा को समर्पित की जाती है, ताकि वह अपने भक्तों को बुराइयों से मुक्त कर सके और उनके जीवन में समृद्धि और शांति ला सके। इस दिन लोग अपने घरों और मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। 

नवां दिन: महानवमी (Day 9: Mahanavami):

महानवमी दशैं का नवां दिन होता है और इसे भी विशेष रूप से पूजा और बलि के लिए जाना जाता है। इस दिन देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नेपाल में, इस दिन विशेष रूप से शाही महल और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बलि दी जाती है। महानवमी के दिन देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है, और उनकी शक्तियों का आह्वान किया जाता है ताकि समाज में बुराई का नाश हो और अच्छाई की स्थापना हो सके।

दसवां दिन: विजयादशमी (तिका का दिन) (Tenth day: Vijayadashami (day of Tika)):

दशैं का सबसे महत्वपूर्ण दिन विजयादशमी होता है, जिसे तिका के दिन के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। लोग अपने परिवार के बड़े-बुजुर्गों से तिका और जमरा प्राप्त करते हैं। तिका चावल, दही और लाल रंग का मिश्रण होता है, जिसे माथे पर लगाया जाता है। यह आशीर्वाद और देवी की कृपा का प्रतीक माना जाता है। जमरा वह पवित्र जौ की घास होती है, जिसे घटनास्थापना के दिन बोया गया था। विजयादशमी के दिन लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने हैं और उनके साथ उत्सव मनाते हैं।

इस दिन लोग देवी दुर्गा और भगवान राम की बुराई पर विजय की कहानियों का स्मरण करते हैं। दशैं के इस दिन को पूरे देश में बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।

ग्यारहवां दिन: एकादशी (Eleventh day: Ekadashi):

विजयादशमी के बाद एकादशी का दिन आता है, जिसमें लोग देवी की पूजा करना जारी रखते हैं। इस दिन को पारंपरिक रूप से पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है। परिवार के सदस्य एक साथ बैठकर देवी दुर्गा के भजन गाते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

बारहवां दिन: द्वादशी (Twelfth Day: Dwadashi):

द्वादशी के दिन लोग अपने घरों में देवी की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं। इस दिन देवी को प्रसाद अर्पित किया जाता है और उन्हें मिठाई और फलों का भोग लगाया जाता है। लोग इस दिन देवी से अपने परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

तेरहवां दिन: त्रयोदशी (Thirteenth day: Trayodashi):

त्रयोदशी के दिन को धार्मिक दृष्टि से विशेष माना जाता है। इस दिन लोग अपने परिवार के साथ मिलकर पूजा करते हैं और देवी के प्रति आस्था प्रकट करते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे के साथ प्रेम और भाईचारे के संदेश का आदान-प्रदान करते हैं।

चौदहवां दिन: चतुर्दशी (Fourteenth Day: Chaturdashi):

चतुर्दशी के दिन को दशैं के समापन की ओर बढ़ने का संकेत माना जाता है। लोग इस दिन देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं। इस दिन को खासकर उन परिवारों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है जिन्होंने अपने पूर्वजों को खो दिया है। लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

पंद्रहवां दिन: कोजाग्रत पूर्णिमा (Day 15: Kojagrata Purnima):

दशैं का अंतिम दिन कोजाग्रत पूर्णिमा होता है, जिसे बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जो धन और समृद्धि की देवी मानी जाती है। लोग इस दिन रात भर जागते हैं और देवी लक्ष्मी का आह्वान करते हैं कि वे उनके घर में धन और समृद्धि लाए।

निष्कर्ष (conclusion):

दशैं न केवल धार्मिक उत्सव है बल्कि सामाजिक और पारिवारिक  एकता का भी प्रतीक है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाता है। और हमें यह संदेश देता है कि जीवन में कितनी भी कथा कठिनाइयां क्यों न आए, अंततः सत्य और धर्म की ही जीत होती है। 

Sobha Devi is an experienced admin with a passion for writing. She brings a unique perspective to her work, blending creativity with insight

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