अम्बुबाची मेला: कामाख्या देवी के तांत्रिक महापर्व का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व

परिचय (Introduction):

अम्बुबाची मेला असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर भारतीय उप महाद्वीप के सबसे महत्वपूर्ण और रहस्यमयी शक्ति पीडो में से एक है। यहां प्रतिवर्ष अम्बुबाची मेला का आयोजन होता है, जो माँ  पृथ्वी की प्रजनन शक्ति और उर्वरता से जुड़ा होता है। यह मेला देवी कामाख्या की पूजा का विशेष अवसर है और इसे भारतीय तांत्रिक परंपराओं में भी उच्च माना जाता है। जब पृथ्वी माता के मासिक धर्म चक्र का प्रतीकात्मक रूप में दर्शन किया जाता है। यह मेला तीन दिनों तक मंदिर के बाहर चलते हैं और चौथे दिन खुलने के अनुष्ठान से जुड़ा है। यह त्यौहार गहरी आध्यात्मिक महत्व के साथ शक्ति परंपरा का एक प्रमुख हिस्सा है, इस लेख में हम अम्बुबाची मेला के महत्व, इतिहास, और अनुष्ठान के बारे में चर्चा करेंगे।

Table of Contents

अम्बुबाची मेला का अर्थ और महत्व (Meaning and Significance of Ambubachi Mela):

अम्बुबाची मेला मां कामाख्या देवी के रजस्वला की अवधि को चिह्नित करता है। कामाख्या देवी को उर्वरता की देवी माना जाता है, और अम्बुबाची मेला उनके मासिक धर्म के समय का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में देवी पृथ्वी को भी अपने गर्भ में लेती है, यह तीन दिन तक चलने वाली एक पवित्र प्रक्रिया होती है, जिसे बहुत श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। चौथे दिन जब मंदिर के द्वारा फिर से खुल जाते हैं तो भक्तों को रजस्वला देवी का प्रसाद में “रक्तवस्त्र” दिया जाता है, जिसे बेहद पवित्र माना जाता है।

अम्बुबाची मेला का इतिहास (History of Ambubachi Mela):

असम के गुवाहाटी शहर के पास नीलांचल पहाड़ पर स्थित कामाख्या मंदिर हिंदू धर्म के पवित्रतम स्थलों में से एक है। मंदिर शक्ति पेड़ों में से एक है, जहां साथी के योगी यानी अंग का पतन हुआ था। और यही कारण है कि इस स्थान को विशेष शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इतिहास कारों का मानना है कि यह स्थान संगत, खांसी, और गारो, लोगों के लिए एक प्राचीन बलिदान स्थल रहा होगा। कुछ विद्वानों का सुझाव है कि मंदिर का नाम खांसी देवी का “माईखा” (शाब्दिक अर्थ: पुरानी चचेरी माँ) से उत्पन्न हुआ है। अम्बुबाची मेला तांत्रिक अनुष्ठान और साधनों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें साधु सन्यासी तांत्रिक और भक्त इस पवित्र समय पर यहां आते हैं। पारंपरिक हिंदू मान्यता के अनुसार मंदिर का उल्लेख 10वीं शताब्दी के कालिका पुराण और योगिनी तंत्र में मिलता है, यहां दवा इन जनजातियों के लोक कथाओं द्वारा समर्पित है।

अम्बुबाची मेला के दौरान अनुष्ठान और परंपराएं (Rituals and Traditions during Ambubachi Mela):

1. मंदिर का बंदा होना (Temple Closure):

अम्बुबाची मेला के पहले दिन मंदिर के द्वार बंद किए जाते हैं, यह प्रतीकात्मक रूप से देवी के मासिक धर्म का समय माना जाता है। इस समय के दौरान किसी भी प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान या पूजा मंदिर के अंदर नहीं किया जाता है।

2. तीन दिन का उपवास और साधना (Three-day fasting and penance):

अम्बुबाची मेला के दौरान गर्भ ग्रह को तीन दिनों के लिए बंद किया जाता है। यह तीन दिनों को “अम्बुबाची” कहा जाता है। यह समय विश्व साधना और तपस्या का होता है, जिसके दौरान विविध धार्मिक अनुष्ठान नहीं किए जाते चौथे दिन मंदिर को शुद्धिकरण के बाद फिर खोल दिया जाता है, जिसे निवृत्ति कहा जाता है देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए इस दौरान विशेष मंत्रोच्चारण और साधना करते हैं।

3. चौथे दिन का खुलना (Temple reopening on the fourth day):

चौथे दिन मंदिर के द्वार फिर से खोले जाते हैं। इस अवसर पर भक्त बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं, और देवी के दर्शन के लिए लालायित रहते हैं। मंदिर का यह  पुनः उद्घाटन एक उत्सव जैसा होता है, जिसमें भक्ति देवी के प्रसाद के रूप में “रक्तवस्त्र” प्राप्त करते हैं और एक उत्सव होता है।

4. रक्तवस्त्र का वितरण (Distribution of Sacred cloth):

अम्बुबाची मेला के प्रमुख प्रसाद के रूप में देवी का “रक्तवस्त्र” भक्तों को दिया जाता है। यह हवास राडवा की मासिक धर्म की अवधि के दौरान उनकी शक्ति का प्रतीक माना जाता है। और इसे अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है, इस वस्त्र को भक्त अपने घरों में सुविधा और शांति समृद्धि के लिए रखते हैं।

अम्बुबाची मेला और तांत्रिक परंपराएं (Ambubachi Mela and Tantric Traditions):

असम राज्य के गुवाहाटी शहर में स्थित कामाख्या मैं प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला अम्बुबाची मेला एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। अम्बुबाची मेला हिंदू कैलेंडर के अनुसार  हर साल जून महीने में होता है, माना जाता है कि इस समय देवी की शक्ति अत्यधिक सक्रिय होती है। और तांत्रिक साधनाओं के लिए यह सर्वोत्तम समय होता है, इस मेला के दौरान तांत्रिक अनुष्ठान, मंत्रोच्चारण, और साधना का विशेष महत्व होता है।

तांत्रिक साधु (Tantric Sadhus):

अम्बुबाची मेला के दौरान विभिन्न तांत्रिक साधु यहां एकत्र होते हैं। यह साधु विशेष रूप से तंत्र साधना और देवी की पूजा के लिए आते हैं। यह समय तांत्रिक सिद्धियां की प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है, और इस दौरान साधना का विशेष महत्व होता है।

मंत्र साधना (Mantra Sadhana):

अम्बुबाची मेला के समय मंत्र साधना का भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। साधक देवी के विशेष मंत्र का जाप करके उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। यह साधना रात दिन चलती रहती है, और देवी की शक्ति को जागृत करने का प्रयास किया जाता है।

अम्बुबाची मेला में साधु-संतों की भूमिका (Role of Sadhus and Saints in Ambubachi Mela):

अम्बुबाची मेला साधु-संतों के लिए एक विशेष समय होता है। क्योंकि यह विभिन्न अखाड़ों से जुड़े साधु इस मेले में शामिल होते हैं। और यह मेला एक प्रकार से साधुओं का महाकुंभ होते हैं, जहां वे अपनी साधन और तपस्या को पूर्ण करने के लिए आते हैं। यहां नागा साधु, अघोरी साधु, और अन्य तांत्रिक साधु विशेष अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। यह मेला का एक प्रमुख आकर्षण होता है, और भक्त बड़ी श्रद्धा से इन साधुओं के दर्शन करने आते हैं।

अम्बुबाची मेला में देवी कामाख्या की पूजा (Worship of Goddess Kamakhya during Ambubachi Mela):

1. कामाख्या देवी का महत्व (Importance of Goddess Kamakhya):

कामाख्या देवी को शक्ति और उर्वरता की देवी मानी जाती है। उनकी पूजा विशेष रूप से महिलाओं को अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। क्योंकि उन्हें मातृत्व और सृजन की देवी के रूप में देखा जाता है, कथा का उल्लेख कालिका पुराण और योगिनी तंत्र में विस्तृत रूप से हुआ है।

2. पूजन विधि (Worship rituals):

अम्बुबाची मेला के दौरान कामाख्या देवी की पूजा विशेष विधियों से की जाती है। हालांकि मंदिर के अंदर पूजा नहीं होती, लेकिन मंदिर के बाहर भक्त अपने श्रद्धा से पूजा करते हैं। देवी के दर्शन के बाद भक्त मंदिर मे परिक्रमा करते हैं, और अनुष्ठानों का पालन करते हैं।

आधुनिक समय में अम्बुबाची मेला (Ambubachi Mela in Modern Times):

अम्बुबाची मेला एक पारंपरिक धार्मिक मेला है, लेकिन आधुनिक समय में इसका महत्व और भी बढ़ता जा रहा है। देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक इस मेले में भाग लेने आते हैं। और सोशल मीडिया के प्रसार के साथ अम्बुबाची मेला अब न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि एक सांस्कृतिक को राजघाट में कजाक्रम के रूप में भी लोकप्रिय बन गया है। इस मेला के माध्यम से असम के सांस्कृतिक धरोहर को और भी तांत्रिक परंपराओं का परिचय व्यापक रूप से दुनिया भर के लोग जान रहे हैं।

अम्बुबाची मेला और महिला सशक्तिकरण (Ambubachi Mela and Women Empowerment):

अम्बुबाची मेला का एक गहरा संबंध महिला सशक्तिकरण और उनके प्राकृतिक शक्ति के सम्मान से जुड़ा हुआ है। यह मेला महिलाओं के मासिक धर्म और मिटा शक्ति को एक सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने का संदेश देता है, जहां समाज में कई बार इस विषय को लेकर चुप्पी रहती है, वही अम्बुबाची मेला जिसे एक पवित्र और शक्ति का प्रतीक मानकर उसका उत्सव मनाता है।

निष्कर्ष (Conclusion):

अम्बुबाची मेला केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रहा, आधुनिक रूप में यह सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम के रूप में भी देखा जाता है। बल्कि उर्वरता शक्ति और तांत्रिक साधनाओं का महापर्व है, यह मेला कामाख्या देवी की पूजा और भारतीय संस्कृति की तांत्रिक परंपराओं को जीवंत बनाएं रखता है। तीन दिनों तक मंदिर का दरवाजा बंद रहता है और चौथे दिन भक्तों को प्रसाद का वितरण यह सभी इस मेले को विशिष्टता है अम्बुबाची मेला हमें नारी शक्ति उर्वरता, और सज्जन शीलता, सशक्तिकरण का महत्व समझाना है। और हमें यह सीखता है की प्रकृति की इस शक्ति को आदर और सम्मान के साथ देखना चाहिए और महिलाओं को सम्मान देना चाहिए।

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