छठ पूजा: चार दिवसीय महापर्व के विधि, महत्व और आध्यात्मिक रहस्य

परिचय (Introduction):

छठ पूजा एक प्राचीन और पवित्र त्यौहार है, जो खासकर बिहार, झारखंड, और उत्तर प्रदेश में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा करना होता है, ताकि वे अपने भक्तों को स्वास्थ्य, सुख, समृद्धि, एकता, परिवार, में सुख, शांति, कल्याण के साथ आशीर्वाद दे सके। छठ पूजा का विशेष महत्व प्रकृति और मानव के बीच के संतुलन को मान्यता देता है, यह त्यौहार सूर्य देवता और  छठी मैया के साथ-साथ जल भूमि और आकाश को भी मुख्य रूप से पूजा किया जाता है।

छठ पूजा मुख्य रूप से 4  दिनों तक मनाया जाता है, जिसमे भक्तों कठोर व्रत रखते हैं और सूर्य देवता से अपने स्वास्थ्य परिवार में सुख, शांति, कामना करते हैं। यह पूजा साल में दो बार आता है एक बार चैत्र मास में और दूसरी बार कार्तिक मास में मनाया जाता है। आईए हम आपको छठ पूजा के प्रत्येक चरण के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि आप इस महान त्यौहार को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाना जा सके।

पहला दिन नहाय खाय (Day 1 Bath and Eat):

छठ पूजा का पहला दिन ‘नहाय खाय’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले शुद्ध जल से स्नान करके, घर की सारी साफ-सफाई अच्छी तरह से की जाती है। ताकि पूजा का स्थल में कोई कीट, पतंग, ना आए और पूजा का स्थान स्वस्थ रहे, इसलिए अच्छे से साफ सफाई किया जाता है। इस दिन केवल सात्विक भोजन खाया जाता है, जिसमें बिना लहसुन, प्याज, के बना खाना खाया जाता है। नहाय खाय के दिन कद्दू-भात और चने की दाल का खास महत्व होता है, यह त्यौहार खासकर बिहारी लोग मनाते है।

महत्व (Importance):

इस दिन का मुख्य उद्देश्य शरीर और मन को शुद्ध करना होता है। यह व्रत शुद्धता का पालन करना होता है, अपने शरीर और आत्मा को पूजा के लिए अच्छी तरह से तैयार किया जाता है।

दूसरा दिन खरना (Second day Kharna):

दूसरा दिन ‘खरना’ के नाम से जाना जाता है। इस पूरा दिन उपवास रखते हैं, पानी भी नहीं पिए बिना रखते यह व्रत रखते हैं। सूर्योदय के बाद संध्या की पूजा करके घर के सभी सदस्य को बाढ़ के खुद भी प्रसाद ग्रहण करते हैं। प्रसाद के रूप में विषोस कर गुड़ की खीर, गेहूं की रोट, और फल इत्यादि शामिल होता है, इस प्रसाद दोस्तों, रिश्तेदार, परिवार, में सभी लोगों को बाँटा जाता है।

महत्व (Importance):

खरना का दिन व्रत के आत्मज्ञान और तप का प्रतीक होता है। यह दिन मानसिक और शारीरिक तपस्या को भी बढ़ावा मिलता है, और व्रत की भक्ति को प्रकट किया जाता है।

तीसरा दिन संध्या अर्घ्य (Third Day Sandhya Arghya):

तीसरे दिन की पूजा सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस पूरे दिन निर्जल व्रत रखा जाता है, बिना पानी खाए यह दिन भी व्रत रखा जाता है। और सूर्योदय के बाद संध्या के काल में सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करते हैं। पूजा के लिए गंगा, या किसी पवित्र नदी, या जलाशय के किनारे जाते हैं, वहां वे सूर्योदय के समय सूर्य देवता की पूजा करते हैं। ताकि घर परिवार, में सुख, शांति, और कल्याण, हमेशा बने रहे, पूजा की सामग्री में नारियल, फल, गन्ना, दीपक, और भी विभिन्न पूजा सामग्री शामिल होती है। व्रत के दिन वे और उनके परिवार सूर्य देवता को दूध और जल अर्घ देते हैं, ताकि आने वाला समय अच्छे हो और परिवार में हमेशा खुशहाली बने रहे।

महत्व (Importance):

इस दिन विशेष कर सूर्य देवता की पूजा की जाती है। सूर्य देवता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का होता है, सूर्य देवता को दूध, जल, और अर्घ्य  भी अर्पित करते है। भक्त उनके द्वारा दिए गए जीवन और ऊर्जा के लिए धन्यवाद करते हैं, ताकि आने वाला समय भी ऐसे ही अच्छे तरीके से गुजर जाए।

चौथा दिन उषा अर्घ्य (Fourth Day Usha Arghya):

छठ पूजा का अंतिम दिन ‘उषा अर्घ्य’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत सूर्योदय से पहले फिर से गंगा नदी के किनारे जाकर उगते हुए सूर्य देवता को दूध जल अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस अर्घ्य का खास महत्व होता है, उगते हुए सूर्य को जीवन की नई शुरुआत सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इसलिए उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में हमेशा सकारात्मक उर्जा का संचार होता है। जब सूर्योदय होता है, व्रती लोग सूर्य देवता की पूजा करते हैं, और आशीर्वाद मांगते हैं की आने वाला समय सकारात्मक सोच से आगे बड़े। परिवार, रिश्तेदार, में हमेशा एकता, प्यार, प्रेम, कल्याण, बने रहे, इसके बाद व्रत तोड़ा जाता है, और प्रसाद को परिवार, दोस्तों, रिश्तेदार, और समाज में बांटा जाता है।

महत्व (Importance):

उषा अर्घ्य सूर्य देवता के उगने और नई जीवन के सकारात्मक ऊर्जा के प्रति के रूप में मनाया जाता है। यह दिन प्रकृति, भक्ति, एकात्म, का प्रतीक भी माना जाता है।

छठ पूजा की तैयारी (Preparation for Chhath Puja):

छठ पूजा की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है। छठ पूजा के समय घर की अच्छे से साफ, सफाई, करते हैं, और पूजा सामग्री का भी अच्छे से साफ सफाई किया जाता है। छठ पूजा के लिए नए-नए कपड़े भी खरीद ते हैं, और तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं, छठ पूजा के लिए विशेष कर बांस की टोकरी, पीतल के बर्तन, दीपक, नारियल, और इत्यादि प्रसाद की सामग्री तैयार की जाती है।

छठ पूजा के दिन व्रती महिलाएं और पुरुष नए कपड़े पहनते हैं। विशेष रूप से महिलाएं साड़ी या अन्य पारंपरिक परिधान भी पहन सकते है। इसी दौरान पूरी तरह से सात्विक जीवन जीते हैं और मांसाहार, शराब, और नकारात्मक विचारों से दूरी रखते हैं,  इसलिए यह पूजा करना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

पूजा का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व (Spiritual and Scientific Importance of Puja):

छठ पूजा सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी बहुत पुरानी है। छठ पूजा का आध्यात्मिक महत्व भी बहुत गहरा होता है, यह पूजा न केवल सूर्य देवता को अर्घ्य चढ़ाना होता है। बल्कि इसे प्रकृति और मानवता के बीच को भी समझने का माध्यम भी माना जाता है, सूर्य देवता हमें जीवन के प्रमुख स्रोत है। हम पूजा करके उस शक्ति को सम्मान देते हैं, जो हमें जीवन देती है। छठी मैया जी ने संतानों की रक्षा और समृद्धि की प्रतीक भी माना गया है, इसलिए यह पूजा में आध्यात्मिक और वैज्ञानिक का भी विशेष महत्वपूर्ण भूमिका है।

विज्ञान की दृष्टि से भी छठ पूजा का समय  विशेष महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान सूर्य, किरण जो शरीर पर पड़ती है, जिसे शरीर को सकारात्मक ऊर्जा के पति आगे बढ़ने का मौका मिलता है। साथ ही जल के समीप सूर्य की उपासना करने से शरीर में मौजूद तब तभी बाहर निकल जाते हैं, इसीलिए छठ पूजा एक प्रकार से प्रकृति के साथ-साथ आध्यात्मिक गुण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी स्वस्थ रखने का तरीका होता है।

छठ पूजा के दौरान विशेष ध्यान देने योग्य बातें (Things to keep in mind during Chhath Puja):

शुद्धता का पालन (Observance of purity):

छठ पूजा के दौरान शुद्धता का बहुत महत्व होता है। व्रती लोग और उनके परिवार को शुद्ध वस्त्र यानी नए कपड़े पहनना चाहिए, क्योंकि पूजा के समय किसी भी तरह की अशुद्धता न पहुंचे इसीलिए इस दिन शुद्धता का बहुत बड़ा पालन करना चाहिए।

सात्विक भोजन (Satvik food):

पूजा के दौरान सात्विक भोजन खाना होगा। प्याज, लहसुन, और मांसाहार पूरी तरह से इस दिन त्याग करना पड़ेगा।

समर्पण और संयम (Dedication and patience):

छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य आत्मा संगमय और समर्पण करना होता है। व्रती लोग कठिन उपवास रखता है, और पूरी श्रद्धा के साथ सूर्य देवता और छठी मां की पूजा पाठ करनी होती है।

सामाजिक  समरसता (Social harmony):

 

छठ पूजा एक ऐसी त्यौहार है जो, समाज के लोगों को इकट्ठा उन लोगों के प्रति प्रेम, और भाईचारे को बढ़ावा देता है। इस दौरान सभी लोग इकट्ठा होके पूजा, अर्चना, करते हैं, और एक दूसरे के प्रति प्यार, स्नेह, आनंद, प्रदान करते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):

छठ पूजा एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जो साल में दो बार मनाया जाता है। छठ पूजा पर न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक होता है, बल्कि यह आध्यात्मिक और वैज्ञानिक का भी बहुत बड़ा उत्सव होता है। यह त्यौहार हमें सिखाता है किसी प्रकार संयम, समर्पण, और श्रद्धा से हम जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त कर सकते हैं। छठ पूजा के हर विधि और हर कदम में हमें यह सिखाता है कि अपने जीवन में प्रकृति का भी सम्मान और उनका ध्यान रखना चाहिए। और जीवन में नकारात्मक सोच को नाश करके सकारात्मक ऊर्जा के प्रति संमय करना चाहिए, तभी हम सच्ची, समृद्धि, सुख, शांति, परिवार में कल्याण पा सकते हैं।

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