परिचय (Introduction):
भारत एक विविधता से भरा देश है, और हर त्यौहार अपनी अपनी खासियत के साथ हमारी संस्कृति को समृद्ध बनता है। इनमें से एक अद्वितीय और दिव्य उत्सव है, देव दीपावली जिसे ‘देवताओं’ की ‘दीपावली’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन यानी दीपावली के 15 दिनों बाद बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। देव दीपावली मुख्य रूप से उत्तर भारत, विशेषकर वाराणसी और असम में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
आईए जानते हैं कि यह पर्व क्या है, इसकी क्या मान्यताएं हैं, और इसे किस तरह से मनाया जाता है इसके बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
देव दीपावली का महत्व (Importance of Dev Deepawali):
देव दीपावली हिंदू धर्म में गहरी आध्यात्मिक मान्यता है। ऐसा माना जाता है, कि इस दिन सभी देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं और गंगा के किनारे दीप प्रज्वलित किया जाते हैं। देव दीपावली के दिन पवित्र गंगा नदी के तट लाखों दीयों की रोशनी से जगमगा उड़ती है, जिससे एक दिव्य और अलौकिक दृश्य उत्पन्न होता है।
इस पर्व को भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर राक्षस का वध करने की खुशी में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रिपुरासुर ने तीनों लोकों पर अत्याचार करना शुरू किया था, तब देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसका संहार किया था, इस विजय को देवताओं ने दीप जलाकर बड़े धूमधाम के साथ मनाया था।
देव दीपावली कैसे मनाई जाती है? (How is Dev Deepawali celebrated?):
देव दीपावली बड़ी श्रद्धा उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसे देखने के लिए हजारों लोग इकट्ठा होते हैं, और पर्यटक वाराणसी और असम जैसे स्थानों पर पहुंचते हैं, यह एक-एक कदम पर भक्ति और दिव्यता का प्रतीक होता है।
1. दीप प्रज्वलन (Lighting of lamp):
इस दिन गंगा नदी के घाटों को दीयों से सजाया जाता है। शाम होते ही लाखों दीयों की रोशनी से गंगा तक जगमगा उड़ती है, हर घाट पर श्रद्धालु दिए जलाकर गंगा मैया की पूजा करते हैं। और आरती भी किया जाता है, यह नज़ारा ऐसा होता है जैसे स्वयं आकाश से तारे धरती पर उतर आए हो, असम में भी ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे दिए जलाए जाते हैं, और दीपों की रोशनी से पूरा असम के लोग वातावरण दिव्यता से बाहर उड़ती है।
2. गंगा आरती (Ganga Aarti):
गंगा आरती दीप जलाने के बाद किया जाता है। यह आराध्य देव दीपावली का मुख्य आकर्षण होता है, वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर विशेष गंगा आरती का आयोजन किया जाता है। आरती के दौरान मंत्रोच्चार, शंख ध्वनि, और घंटे की आवाजें से वातावरण दिव्या को और भी खास बनाती है। भक्तजन आरती देखने के लिए घंटा पहले ही घाट पर इकट्ठा हो जाते हैं, यह दृश्य अत्यंत भव्य और उत्साही होता है। आरती के बाद श्रद्धालु दीपों को गंगा में प्रवाहित करते हैं, ऐसा माना जाता है कि इससे उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है। और पवित्र गंगा नदी में प्रवाहित देवों से समस्या वातावरण हर दुख का नाश हो जाता है, और हर कामना शुद्ध होती है।
3. विशेष पूजा और अनुष्ठान (Special Pujas and Rituals):
देव दीपावली के दिन लोग अपने-अपने घरों में भी घर को अच्छे से साफ-सफाई करके दिए जलाए जाते हैं। घर के आंगन को भी दिए से सजाए जाते हैं, भगवान शिव, माता पार्वती, और देवी देवताओं की पूजा की जाती है। लोग अपने-अपने सुख-समृद्धि परिवार में हमेशा खुशहाली के लिए विशेष प्रार्थना करते हैं, इस दिन मंदिरों में भी भव्य सजावट दिए जलाए जाते हैं। मंदिरों को भी दिए से सजाया जाता है, भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है, लोग इकट्ठा होकर इस पर्व को आनंद के साथ देवी देवताओं की स्तुति करते है।
4. दर्शन और स्नान (Darshan and Bath):
कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व होता है। यह मानता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं, और सभी नकारात्मक सोच को भी बदलाव मिलते हैं। लोग बड़े उत्साह के साथ स्नान करते हैं, और दीप जलाकर गंगा मैया की पूजा-अर्चना करते हैं। श्रद्धालु लोग गंगा के घाटों पर दान, पुण्य, भी करते हैं, कई लोग जरूरतमंदों को भोजन का आयोजन भी करते हैं।
वाराणसी और असम में देव दीपावली का अनुभव (Experiencing Dev Deepawali in Varanasi and Assam):
देव दीपावली का असली आनंद वाराणसी के घाट पर देखने को मिलता है। यहां के दशाश्वमेध, मणिकर्णिका, और अस्सी घाट पर यह त्यौहार बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। घाटों पर रंग-बिरंगी रोशनी और दीपों की कतारें देखकर ऐसा लगता है, कि जैसे धरती पर स्वर्ग स्वयं आया है। इसके अलावा असम के ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर भी यह पर्व बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है, लोग पूरे भक्ति के साथ दीए जलाकर भजन- कीर्तन आरती करके यह त्यौहार को और भी खास बनाते हैं।
1. आधुनिक परिपेक्ष में देव दीपावली (Dev Deepawali in modern context):
आधुनिक परिपेक्ष में भी यह परंपरा एक अद्भुत संगम देखने को मिलता है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई संस्कृति कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है, भक्तों के लिए विशेष सुविधाओं का भी प्रबंधन किया जाता है। ड्रोन शो, लेज़र लाइट शो, और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने इस पर्व को और भी आकर्षक बना दिया है, इसके बावजूद लोगों की आस्था और श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई है, ईस युग में भी यह पर्व बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
2. पर्यावरण संरक्षण का संदेश (Message of environmental protection):
जहाँ देव दीपावली दिव्यता भक्ति का प्रतीक होता है। यह पर्व पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी होता है, आजकल लोग दिए जलाने के साथ-साथ स्वच्छता अभियान भी चलाते हैं। घाटों की सफाई किए जाते हैं, इसी तरह यह पर्व आध्यात्मिकता के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी का भी प्रतीक बन चुका है।
निष्कर्ष (Conclusion):
देव दीपावली केवल एक त्यौहार ही नहीं होता है, बल्कि यह आस्था, भक्ति, दिव्यता, के साथ मनाने का मौका भी होता है। यह पर्व हर साल लाखों लोगों में इकट्ठा होकर यह दिव्यता का अनुभव करता है, और यह याद दिलाता है कि प्रकाश और अच्छाई की विजय अंधकार और बुराई पर हमेशा जीत होती है। यह त्यौहार न केवल भारत के लोगों को जोड़ता है, बल्कि विदेशियों के लिए भी यह त्यौहार भारतीय संस्कृति और परंपराओं को जानने का एक अवसर प्रदान करता है।