परिचय (Introduction):
Chhath Puja in Terai भारत और नेपाल के सीमावर्ती इलाकों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मईया की आराधना के लिए प्रसिद्ध है। खासकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र (Terai Region) में यह पर्व अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
Chhath Puja in Terai का महत्त्व (Importance of Chhath Puja in Terai):

Chhath Puja हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व sun worship (सूर्य उपासना) का एक अनूठा उदाहरण है, जिसमें जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
Chhath Puja in Terai का ऐतिहासिक महत्व (Historical importance of Chhath Puja in Terai):

Chhath Puja in Terai क्षेत्र में सदियों से मनाया जाता रहा है। यह पर्व King Janak (राजा जनक) के समय से मनाने की परंपरा रही है।
इसे भगवान सूर्य की उपासना के रूप में मनाया जाता है।
महाभारत के अनुसार, द्रौपदी और पांडवों ने भी इस व्रत को किया था।
छठ व्रत को करने से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
Chhath Puja in Terai की विशेषताएँ (Features of Chhath Puja in Terai):

1. सूर्य उपासना – इस पर्व में सूर्य को अर्घ्य देना मुख्य क्रिया होती है।
2. Nirjala Vrat (निर्जला व्रत) – उपवासी व्यक्ति बिना जल ग्रहण किए यह व्रत रखते हैं।
3. Prasad Preparation (प्रसाद निर्माण) – इसमें ठेकुआ, चावल के लड्डू, और मौसमी फल चढ़ाए जाते हैं।
4. River or Pond Worship (नदी या तालाब पूजा) – छठ पर्व को घाटों पर किया जाता है, जिससे जल का महत्त्व भी बढ़ जाता है।
Chhath Puja in Terai क्षेत्र में कैसे मनाई जाती है? (How is Chhath Puja celebrated in Terai region?):
तराई क्षेत्र (Terai region) में Chhath Puja बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। यहाँ लोग बड़े जोश के साथ इस पर्व को मनाते हैं।
1. पहला दिन – Nahay Khay (नहाय खाय) (First day – Nahay Khay (Nahay Khay):

इस दिन व्रती स्नान कर सात्विक भोजन करते हैं।
2. दूसरा दिन – Kharna (खरना) (Second day – Kharna (Kharna):

इस दिन निर्जला व्रत रखकर रात को गुड़ और चावल की खीर खाई जाती है।
3. तीसरा दिन – Sandhya Arghya (संध्या अर्घ्य) (Third day – Sandhya Arghya (evening prayer):

सूर्यास्त के समय व्रती जल में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं।
4. चौथा दिन – Usha Arghya (उषा अर्घ्य) (Fourth day – Usha Arghya):

सूर्योदय के समय पुनः अर्घ्य दिया जाता है और फिर व्रत समाप्त होता है।
Chhath Puja in Terai का प्रभाव और सांस्कृतिक महत्त्व (Impact and cultural significance of Chhath Puja in Terai):

तराई क्षेत्र (Terai Region) में Chhath Puja केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं बल्कि सामाजिक एकता और समरसता का प्रतीक भी है।
इस पर्व में नदियों और तालाबों को स्वच्छ किया जाता है।
आपसी भाईचारे और प्रेम को बढ़ावा मिलता है।
आर्थिक रूप से स्थानीय व्यापार को भी बढ़ावा मिलता है।
Chhath Puja in Terai में किस प्रकार की सजावट की जाती है? (What type of decorations are done in Chhath Puja in Terai?):

1. Ghats Decoration (घाटों की सजावट) – नदियों और तालाबों को अच्छे से साफ कर सजाया जाता है।
2. Banana Trees (केले के पेड़) – केले के पत्तों से मंडप सजाया जाता है।
3. Clay Diyas (मिट्टी के दीये) – पूरे घाट पर दीयों की रोशनी की जाती है।
Chhath Puja in Terai में यात्रा और पर्यटन (Travel and Tourism in Chhath Puja in Terai):

तराई क्षेत्र में Chhath Puja के दौरान कई पर्यटक यहाँ आते हैं। खासकर Janakpur (जनकपुर), Birgunj (बीरगंज) और Lumbini (लुंबिनी) जैसे क्षेत्रों में इस पर्व को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु आते हैं।
Chhath Puja in Terai में पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Impact of Chhath Puja in Terai):
Chhath Puja in Terai का पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
Water Conservation (जल संरक्षण) – लोग नदियों की सफाई करते हैं।
Plastic Ban (प्लास्टिक प्रतिबंध) – इस दौरान पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ती है।
Greenery Promotion (हरियाली संवर्धन) – इस पर्व के दौरान वृक्षारोपण भी किया जाता है।
निष्कर्ष (Conclusion):
Chhath Puja in Terai केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि यह समाज को जोड़ने और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने वाला महापर्व भी है। यह पर्व सूर्य उपासना, पर्यावरण संरक्षण, और Cultural Harmony का प्रतीक है।